shahil khan

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छोटे छोटे सवाल –१९

गनेशीलाल ने अपने हिसाब से बात को सैद्धान्तिक मोड़ देकर धर्म के नुक्ते पर लाकर छोड़ दिया। वह जानते थे कि यह लालाजी का मर्म स्थान है। फिर बोले, "वह सोत्ती बच्चा है, बाह्मन है, पास का है। दस-बीस रुपए कम पर तैयार हो जावेगा। मैंने इनसे कया कि उस मुसलमान्न से तो वह बाह्मन का लौंडा ही लाख जगह अच्छा है। पर इनकी समझ में काए कू आवै।" लालाजी बोले, "बोल्लो भय्या नत्थूसिंह, क्या कहो हो?" नत्थूसिंह बोले, "लालाजी, बात हिन्दू-मुसलमान की नहीं है। बात दरअसल ये है कि इनके छोटे भाई सोहन के पास आज ही रामचन्दर वकील साहब का लम्बा-सा तार आया है बिजनौर से। इसीलिए ये सोती को लेना चाह रहे हैं।" फिर अगली बात सोचने का अवसर ढूँढ़ते हुए बोले, "क्यों गनेशीलाल ! बोलो, क्या मैंने कुछ गलत कहा?"

गनेशीलाल फौरन सिद्धान्त की पटरी से उतर गए; बोले, "मैं ये कब कहूँ तार नई आया । सो मेरा सोत्ती के लिए कहना ठीक भी है। पर तुम्हारे पास तो कोई तार भी नई आया, फिर तुम क्यों उस मुसलमान लौंडे के पीछे पड़े हो? न सूरत, न सकल, न अकल। कम-से-कम सोत्ती..." और सोती की प्रशंसा का वाक्य अभी पूरा भी नहीं हुआ था कि लालाजी ने बात काटकर कहा, "मुझे कुछ खियाल नहीं आ रया, भैय्या। ये मुसलमान लौंडा कौन-सा था?" "अजी वही इकरार या इसरार, क्या नाम है उसका ? वही जो भंडेलोबाला पजाम्मा पहने था।" गनेशीलाल ने विरक्ति से कहा।

चौधरी नत्थूसिंह को अपना पाला कमजोर पड़ता दिखाई दिया तो बोले, "कोतवाल साहब का भानजा है, लालाजी। आपको ख्याल नहीं रहा। जरा फिर से बुलाकर देखिए, तबियत खुश हो जाएगी। बड़ा होनहार लड़का है। चाल-चलन का बड़ा सच्चा है।"

कोई और दिन होता तो लालाजी कोतवाल के भानजे को ज़रूर ले लेते। पर आज वह डिप्टी साहब के भतीजे को ले चुके थे। थानेदार की क्या औकात है डिप्टी के सामने ! दूसरे, उन्हें यह भी लगा कि कोतवाल साहब ने खुद उनसे नहीं कहा। फिर वह चौधरी साहब को नाराज नहीं करना चाहते थे क्योंकि उनके और उनके डॉक्टर लड़के के हाथ में काफी वोट थे और लालाजी 'म्युनिसिपल्टी' का इलेक्शन लड़ने का पक्का निश्चय कर चुके थे।

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